अधरों पर स्मित मुस्कान धरे हुए..
गह्वर तले बोलियों को समेटे हुए..
उमड़ते ख़्यालों के सिरों को जकड़े हुए..
वो चुप रह गई,शालीनता की चादर ओढ़े हुए।
अरसा हुआ मुस्कान को बेरंग हुए..
ख्यालों को आवाज़ तक पहुँचे हुए..
उन तंग गलियों से हवाओं को गुज़रते हुए..
शालीनता की चादर को बदरंग होते हुए ।
कितने ख़्वाब आँखों में ही तिरते हुए..
पराये सपनों में ख़ुशियाँ मनाते हुए..
वो सोंधी मिट्टी की महक ढूँढते हुए..
चादर की ओट में यूँ ही भरमाये हुए ।
आज बूँदों की दस्तक है शोर मचाये हुए..
खोल बंद कपाट,मन के कोनों को भिगाये हुए..
हर धूल की परत को धीमे से हटाते हुए..
चली सपनों की राह आज क़दम बढ़ाये हुए ।
#जया रंजन
Pic courtesy-अर्पिता दासगुप्ता
Jaya mam incredible really very very nice.
Beautiful poem
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